शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

सोने की चिड़िया बंद है सत्ता धारियों की तिजोरी में

"भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है स्विस बैंक के
डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280
लाख करोड़ रुपये (280 ,00 ,000 ,000 ,000) उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम
इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.
...या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है
कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह
सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम
इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल
तक ख़त्म ना हो.
यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये
... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का
सिलसिला अभी तक 2010 तक जारी है. इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो
गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़
रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़
लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में
280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार
करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है. 
कपिल सनी सचदेव के फेस बुक पेज से साभार 
http://www.facebook.com/event.php?eid=113604235382758

अन्ना हज़ारे : गूँज रहे हैं गली , चौबारे

जन जन के मन की बात का अनहद नाद बन अन्ना हज़ारे गूँज रहे हैं गली , गाँव, चौबारे ... आईये उनके सुर में सुर मिलाएँ ; जहाँ, जिससे, जैसे हो सके , कुछ नहीं तो मन में ही पूरी आस्था से गुनगुनाएँ.

सोमवार, 28 मार्च 2011

सीमा तोड़ता समुद्र

जापान की सुनामी पर ढेरों चित्र और वीडियोज़ नेट पर उपलब्ध हैं मगर इस वीडियो में दर्ज तबाही दिखाती है के कैसे सुनामी की लहरें मिनटों में समूचा शहर निगल सकतीं हैं.

यात्रा

journey

गुरुवार, 24 मार्च 2011

कामिक ट्रिप – 4

   http://cagle.com/ से साभार

कालाधन

कालेधन के बारे में अध्ययन करने वाली देश व दुनिया की सभी संस्थाओं एवं शीर्ष अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत आजादी के इन 64 वर्षों में 300 लाख करोड़ रुपये देश के बाहर (विदेशों में) तथा 100 लाख करोड़ रुपये देश की आंतरिक अर्थव्यव्स्था में जमा हो गये। इस पूरे कालखंड में लगभग 55 वर्षों से अधिक कांग्रेस का शासन देश में रहा। आखिर इतने बडे कालेधन इतने बडे कालेधन की अर्थव्यवस्था केन्द्र सरकार के सहयोग के बिना कैसे खडी हो गयी? इतिहास की सबसे बडी लूट के बावजूद केन्द्र सरकार मौन क्यों है?
                                                                   स्वामी रामदेव 


स्वामी रामदेव के वेब साइट से साभार http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/ViewAllSwamijiBlog.aspx

शनिवार, 19 मार्च 2011

अमरण की ओर: फुकुशीमा फिफ्टी


दुनिया भर की नज़रें जापान के फुकुशीमा न्यूक्लियर प्लांट पर लगी हैं जहाँ काफी समय बीत जाने के बाद भी विनाश का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. विकिरण का स्तर बढ़ने के साथ जहाँ प्लांट के ज़्यादातर कर्मचारी सुरक्षित स्थानों पर चले गए, वहीं कुछ कर्मचारी ऐसे हैं जिन्होंने मौत की शर्त पर भी देश और मनुष्यता को बचाने का बीड़ा उठाया हुआ है. ये 50 हैं 70 या 300 इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं है. अजेय नाभिकीय योद्धाओं के इस दल को फुकुशीमा फिफ्टी का नाम दिया गया है और यह दल ही जानलेवा विकिरण तथा जापान और दुनिया के लोगों के बीच की अंतिम सुरक्षा पंक्ति बना हुआ है.
अपने प्राणों का होम कर मनुष्यता का पोषण करने वाले इन नाभिकीय योद्धाओं को हमारा विनम्र नमन.

जापान की विभीषिका को देखते हुए भारत के जैतपुर में लगने वाले न्यूक्लियर प्लांट के विरोध में ग्रीन पीस ने एक हस्ताक्षर अभियान चलाया है नीचे दर्ज लिंक के ज़रिये इस अभियान से जुड़कर आप भी नाभिकीय योद्धा बन सकते हैं.


फुकुशीमा न्यूक्लियर प्लांट और जापान की विभीषिका के बारे में गार्जियन के पेज पर लगातार अपडेटेड सूचना निम्नलिखित लिंक पर दी जा रही है -
http://www.guardian.co.uk/world/blog/2011/mar/16/japan-nuclear-crisis-tsunami-aftermath-live


शनिवार, 12 मार्च 2011

पारदर्शी एलसीडी स्क्रीन जो चले बिना बिजली



सैमसुंग ने एक ऐसी एलसीडी स्क्रीन बनाई है जो पूरी तरह पारदर्शी है यानि स्क्रीन के चित्रों के साथ-साथ स्क्रीन के पीछे की गतिविधियों का भी नज़ारा लिया जा सकता है और यह स्क्रीन सूर्य उर्जा से चलती है मगर सुनकर घबराईये मत इसे धूप की ज़रूरत नहीं, इसे इतने कम पावर की ज़रूरत होती है के अपने परिवेश में आ रही काम चलाऊ रौशनी ही इसे चलाने के लिए काफी है. 


इस स्क्रीन के प्रकाश की तीव्रता प्रचलित स्क्रीन्स से कम है और कुछ लोगों को यह थोडी बुझी हुई लगे तब भी वैज्ञानिक रूप से आँखों के लिए फायदेमंद है क्योंकि कमप्यूटर स्क्रीन की तीव्रता ही उसका नियमित स्तेमाल करने वालों की आँखों पर बुरा असर डालती है तो यह स्क्रीन एक तरह से वर्चुअल ईजगत को किताबों की आँखों पर अनावश्यक ज़ोर ना देने वाली दुनिया के ज़्यादा निकट ले आती है.
यह एक प्रायोगिक माडल है जो परीक्षण में पूर्णत: सफल रहा है अब देखना यह है के यह कब और किस कीमत पर बाज़ार में पहुँचता है.
http://inhabitat.com/samsung-unveils-solar-powered-zero-energy-transparent-tv/
  

गुरुवार, 10 मार्च 2011

अनीश कपूर : निराकार को उघारता कलाकार


कला जीवन को देखने की नई दृष्टि देती है, जीवन को परखने के नए माध्यमों से परिचित कराती है और इस तरह हमें जीवन के नए आयामों तक ले जाने का माध्यम बनती है मगर ऐसे कलाकार बिरले ही मिलते हैं जो अपने समय को  पुनर्परिभाषित करते हैं और जनचेतना को झकझोर कर उसकी संवेदना के तल को एक क्वांटम लीप में ले जाते हैं.
भारतिय मूल के ब्रिटिश कलाकार अनीश कपूर अपने काम से युग को परिभाषित करने की क्षमता रखने वाले ऐसे ही कलाकार हैं.
अनीश अपनी क्रितियों के माध्यम से प्रेक्षक को निराकार के ऐसे जगत में प्रतिस्थापित कर देते हैं जहाँ देखने के भाव के साथ साथ दर्शक भी विलीन हो जाता है और अस्तित्व की लय के साथ सिर्फ होने का सुखद भाव ही अनुभूति की त्वरा के पास बच जाता है.


उनकी क्रितियों की परावर्तक सतह से कभी वस्तुओं का आकार परिवेश की छाया में ऐसे गुम हो जाता है के वस्तुएँ अपना आकार और आयाम खो देती हैं तो कभी किसी कलाक्रिति के तल को वो ऐसी दिशा में ले जाते हैं के दर्शक का मन निर्विचार के अतल में खो जाता है.
एक सार्थक कलाक्रिति को आत्मसाध करने के बाद दर्शक का रिफरेंस बिंदु बदल जाता है. अनीश ऐसे युगदृष्टा कलाकार हैं जो आम प्रेक्षक को भी निराकार का दृष्टा बना देते हैं.

चित्र - गूगल,बिंग,फ्लिकर और अनीस कपूर के वेब साईट से साभार




बुधवार, 9 मार्च 2011

मगन

http://1x.com/photos/member/44823/39221/

अकेला हो जब समय


http://1x.com/photos/member/12692/20716/

यांत्रिक छठी इंद्री जो जोड़ दे असली दुनिया को वर्चुअल ई-जगत से


एम आइ टी के होनहार छात्र प्रणव मिस्त्री ने अपनी खोज सिक्स्थ सेंस (यांत्रिक छठी इंद्री) से बाहर के भौतिक जगत को अनूठे ढंग से कमप्यूटर के वर्चुअल ई-जगत के साथ एक सार कर दिया है. एक कैमेरे, एक छोटे प्रोजेक्टर और अपने बनाए एक साफ्टवेयर की मदद से प्रणव कमप्यूटर की विराट कार्यक्षमता और इंटरनेट के अनंत सूचना संसार को आपकी हमारी दुनिया से ऐसे मिला देते हैं के बस सोचने की मेहनत ही करनी होती है और कुछ शारिरिक भंगिमाओं/मुद्राओं (जेस्चर्स) की मदद से काम निपट जाता है. अगर राह में कोई फोटो लेना हो तो दोनो हाथों से एक खास मुद्रा बनाईये और सिक्स्थ सेंस का कैमेरा चित्र खींच लेगा. चित्र में सशोधन या उसे निकाल फेंकने के लिए पास की किसी दीवार पर सिक्स्थ सेंस के प्रोजेक्टर से छवि प्रक्षेपित कीजिए और मनचाहा संशोधन कर डालिए . आप इसके जरिए फोन कर सकते हैं खरीदारी करते हुए चीज़ के बारे में पड़ताल कर सकते हैं कही जाने के लिए अपनी टिकट जाँच सकते हैं और तो और जब किसी से मिलें तो उसी व्यकित के शरीर पर उसके बारे में इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी प्रोजेक्ट हो जाती है ताकि आप व्यक्ति की रुचियों और स्वभाव को बेहतर ढंग से पहचान सकें. हाथ में अखबार हो कोई साधारण कागज़ या फिर किसी का शरीर ही सही यानि कुल जमा कोई तल होना चाहिये जिसपर छवि प्रक्षेपित की जा सके और बस अब नेट सर्फ करें या फिल्म देखें गेम खेलें या खरीदारी करें. इस होनहार भारतीय ने ना सिर्फ इस विलक्षण तकनीक को जन्म दिया है बल्कि बड़ी-बड़ी कंपनियों के आफर्स को ठुकरा कर जनसामान्य की सेवा में इस तकनीक को मुफ्त वितरित किया है.

टेड पर इस तकनीक  का पूरा वीडियो उपलब्ध है आप Interactive Transcript पर हिन्दी चुन कर चर्चा का हिन्दी तरजुमा भी देख सकते हैं.



मंगलवार, 8 मार्च 2011

गया ज़माना डेस्कटाप्स और लैपटाप्स का - एपल का आई पैड 2


 गया ज़माना डेस्कटाप्स और लैपटाप्स का यह घोषणा करता हुआ एपल का आई पैड -2 आ गया है. पाठशाला जाते बच्चों की स्लेट याद है आपको बस उसी आकार की यह इलेक्ट्रानिक स्लेट भारी भरकम कम्पूटर की जगह लेने बाज़ार में आ चुकी है.  इसमें आप ईबुक पढ़ने, इंटरनेट सर्च से लेकर फिल्म देखने तक लगभग वह सारे काम कर सकते हैं जो एक साधारण कम्पूटर करता है. इसकी बैटरी 10 घंटे तक चलती है यानि एक बार चालू करने के बाद दिन भर काम करने के बाद ही इसे आफ करने की ज़रूरत है. वीडियो रिकार्डिंग के लिए (पीछे की ओर) कैमेरा भी है जबकि सामने की ओए वीडिओ चैटिंग के लिए एक दूसरे कैमेरे की व्यवस्था है. भारतीय मुद्रा मे इसके प्रारंभिक माडल की कीमत लगभग 25000 रुपये होगी.

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

पारदर्शी बसेरा


जंगल हो या रेगिस्तान रहने को मिल जाए अगर पारदर्शी तंबू तो मिले वातावरण का पूरा मज़ा... वह भी घरेलू सुविधा और सुरक्षा के साथ ! ये बबल ( पारदर्शी तंबू ) ना सिर्फ 360 डिग्री से आसपास के माहौल का मज़ा देते हैं बल्कि अल्टावायलेट किरणों को आप तक पहुँचने से भी रोकते हैं और सबसे सुंदर बात यह कि ये रिसाइकल्ड मटीरियल से बने हैं. 
http://inhabitat.com/bubbletree-clear-prefab-bubble-tents-for-romantic-exhibitionism-in-the-wild/

गुरुवार, 3 मार्च 2011

उर्जा वृक्ष्

पवन चक्कियाँ बिजली बनाने का बेहतरीन साधन हैं मगर आमतैर पर वो बड़ी होती हैं, बहुत सी जगह घेरती हैं और मँहगी होती हैं. एन एल आर्किटेक्टस् ने पवन चकिक्यों के नगरीय स्तेमाल के लायक डिज़ाइन तैयार किया है जिसे उन्होने पावर फ्लावर्स क नाम दिया है. पेडों की तरह एक ही तने से निकलने वाली कई पवन चक्कियाँ ना सिर्फ कम जगह घेरती हैं बल्कि हवा के हल्के झोकों को भी बिजली में बदलती रहती हैं. उर्जा के ये आधुनिक वृक्ष ना सिर्फ पदूषण रहित विधी से बिजली बनाते हैं बल्कि परिवेश की सुंदरता भी बढ़ाते हैं
.http://inhabitat.com/power-flower-wind-turbine-trees-could-domesticate-wind-energy/

झुटपुटा

http://1x.com/photos/latest-additions/39381/

विलय

गज

बुधवार, 2 मार्च 2011

कार्डबोर्ड स्तंभ : बेमिसाल सुंदरता और दुनिया का सबसे जटिल आर्किटेक्चर


इन अनूठे कार्डबोर्ड स्तंभों के रचनाकार हैं माइकल हैंसमेयर. फास्टको डिज़ाईन के अनुसार यह दुनिया का सबसे जटिल आर्किटेक्चर है. इन स्तंभों के कटाव में आपको  80 से 160 लाख सरफेस नज़र आएँगे. कम्पूटरजनित 3डी प्रिंटिंग के ज़रिये भी यह काम महीनों का श्रम और अकूत लागत की माँग करता है मगर अपनी सहज बुद्धि के ज़रिये हैंसमेयर ने इसे 15 घंटों की मेहनत और 1500 डालर्स की लागत से बना लिया.